Sunday, January 24, 2021

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

SREE GEETA YOG PRAKASH 

अध्याय - 2 

सांख्य योग


युद्ध क्षेत्र में खडे़ हुये हो, यह तो समय विषम है ।

मोह कहॉं से आया अर्जुन, अपयशदायक मन है ।।

पण्डित ज्ञानी सम तव वाणी, मोह मन में लाओ ।

यह न शोका का समय ,करो कर्त्तव्य, वहीं बस ध्यावो।। 6


सब थे पहले ,फिर भी होंगे ,चलता चक पुराना ।

जो भी जन्म लिया मरता है ,नया ही बने पुराना ।।

इस तन में है आत्मा , अमर और अविनाशी।

बसन बदलना होता रहता , क्या मगहर क्या काशी ।। 7


जो है निश्चित , शोक न करना, सत्य सदा अविनाशी ।

धर्म युद्ध में युद्ध करो हे ,कीर्ति मिले अविनाशी ।।

मृत्यु -मिलन का शोक न करना , स्वर्ग मिलेगा तत्क्षण ।

कष्ट अगर इन्द्रिन को होगा , सहते जाना हर क्षण ।। 8


दुःख सुख में मन को सम रखना , हे मेरे वरवीर ।

ये तो नित्य नही रहते है, मत आतुर हो धीर ।।

समता में रहने वाले को ,कभी न लगता पाप ।

सांख्य योग प्रारम्भ हुआ तो , नाश न हो परताप ।। 9


इसका पालन निशदिन करना, कर्म का बन्धन काटे ।

निर्भय सदा बना रहता है, सत्य के हाटे बाटे ।।

कर्म नहीं कोई बल रखता, इस समता के आगे ।।

निश्चल मन जब हो समाधि में , स्थितप्रज्ञता जागे ।। 10


स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण है ,हे प्रभुवर बतलाये।

काम-रहित,निज आत्म पथिक, अति तुष्ट प्रभु बतलाये ।।

जो सुख दुःख में समचित रहता , मन विकार नहिं जागे ।

जो परहित में आगे रहता, अरु प्रपन्च से भागे ।। 11


आसक्ति हो विषय के चिन्तन , आसक्ति से काम ।

काम क्रोध की जननी बनता , मूर्खता परिणाम ।।

मूढ़ बने तो चेत भी भागे , ज्ञान का होवे नाश।

मृतक समान बने नर उस क्षण, ज्ञान का हो जब नाश ।। 12


ज्ञान नहीं तो भक्ति भी भागे , भागे तुरत विवके ।

भक्ति बिना नहिं शांति मिले , यह परम सलोना टेक ।।

शांति बिना सुख सपनेहु दुष्तर, बोले सन्त अनेक ।

योगी जागे , जब जग सोवे , यही एक पथ नेक ।। 13


ब्राह्मी-दशा प्राप्त नर ऐसा , परम शांति को पाता ।

पाकर परम प्रभु पथ पावन ,मोह मार्ग नहिं जाता ।।

अन्त काल में भी समता रख , ब्रह्मलीन हो जाता ।

मुक्त हुआ जीवन बन्धन से ,वही मोक्ष है पाता ।। १४


प्रथम श्रवण ,फिर मनन करो हे, सांख्य ज्ञान के खातिर ।

आत्म ज्ञान पा , लिप्त न हो मन , जगत मोह के खतिर ।।

यही दशा जीवित मुक्ति की ,जीवित ही पा जाना ।

कर्म सभी जग का करना हे , प्रभु संग प्रीति निभाना ।। 15



हुआ समाप्त द्वितय अध्याय ।

प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।

गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।



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