श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2
SREE GEETA YOG PRAKASH
अध्याय - 2
सांख्य योग
युद्ध क्षेत्र में खडे़ हुये हो, यह तो समय विषम है ।
मोह कहॉं से आया अर्जुन, अपयशदायक मन है ।।
पण्डित ज्ञानी सम तव वाणी, मोह मन में लाओ ।
यह न शोका का समय ,करो कर्त्तव्य, वहीं बस ध्यावो।। 6
सब थे पहले ,फिर भी होंगे ,चलता चक पुराना ।
जो भी जन्म लिया मरता है ,नया ही बने पुराना ।।
इस तन में है आत्मा , अमर और अविनाशी।
जो है निश्चित , शोक न करना, सत्य सदा अविनाशी ।
धर्म युद्ध में युद्ध करो हे ,कीर्ति मिले अविनाशी ।।
मृत्यु -मिलन का शोक न करना , स्वर्ग मिलेगा तत्क्षण ।
कष्ट अगर इन्द्रिन को होगा , सहते जाना हर क्षण ।। 8
दुःख सुख में मन को सम रखना , हे मेरे वरवीर ।
ये तो नित्य नही रहते है, मत आतुर हो धीर ।।
समता में रहने वाले को ,कभी न लगता पाप ।
सांख्य योग प्रारम्भ हुआ तो , नाश न हो परताप ।। 9
इसका पालन निशदिन करना, कर्म का बन्धन काटे ।
निर्भय सदा बना रहता है, सत्य के हाटे बाटे ।।
कर्म नहीं कोई बल रखता, इस समता के आगे ।।
निश्चल मन जब हो समाधि में , स्थितप्रज्ञता जागे ।। 10
स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण है ,हे प्रभुवर बतलाये।
काम-रहित,निज आत्म पथिक, अति तुष्ट प्रभु बतलाये ।।
जो सुख दुःख में समचित रहता , मन विकार नहिं जागे ।
जो परहित में आगे रहता, अरु प्रपन्च से भागे ।। 11
आसक्ति हो विषय के चिन्तन , आसक्ति से काम ।
काम क्रोध की जननी बनता , मूर्खता परिणाम ।।
मूढ़ बने तो चेत भी भागे , ज्ञान का होवे नाश।
मृतक समान बने नर उस क्षण, ज्ञान का हो जब नाश ।। 12
ज्ञान नहीं तो भक्ति भी भागे , भागे तुरत विवके ।
भक्ति बिना नहिं शांति मिले , यह परम सलोना टेक ।।
शांति बिना सुख सपनेहु दुष्तर, बोले सन्त अनेक ।
योगी जागे , जब जग सोवे , यही एक पथ नेक ।। 13
ब्राह्मी-दशा प्राप्त नर ऐसा , परम शांति को पाता ।
पाकर परम प्रभु पथ पावन ,मोह मार्ग नहिं जाता ।।
अन्त काल में भी समता रख , ब्रह्मलीन हो जाता ।
मुक्त हुआ जीवन बन्धन से ,वही मोक्ष है पाता ।। १४
प्रथम श्रवण ,फिर मनन करो हे, सांख्य ज्ञान के खातिर ।
आत्म ज्ञान पा , लिप्त न हो मन , जगत मोह के खतिर ।।
यही दशा जीवित मुक्ति की ,जीवित ही पा जाना ।
कर्म सभी जग का करना हे , प्रभु संग प्रीति निभाना ।। 15
हुआ समाप्त द्वितय अध्याय ।
प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।
गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।
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