अध्याय 1 – गांव और अर्जुन का बचपन
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव धनपुर में मिट्टी के कच्चे घरों की कतारें थीं। बारिश में रास्ते कीचड़ में बदल जाते, गर्मी में धूल उड़ती रहती। उसी गांव में पैदा हुआ था अर्जुन।
अर्जुन का परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता रामकिशोर गांव के खेतों में मज़दूरी करते। अपनी ही ज़मीन नहीं थी। मां गोविंदी दिन-रात चूल्हे के धुएं में खांसती, मगर कभी बेटे को भूखा नहीं सुलाती।
अर्जुन शुरू से ही अलग था। गांव के बच्चे स्कूल छोड़कर खेतों में खेलते, मगर वह टूटी फूटी किताब लेकर आम के पेड़ के नीचे पढ़ता। मास्टर दयाराम उसकी लगन देखकर मुफ्त में पढ़ाते थे।
रामकिशोर को कभी-कभी गुस्सा आता –
“पढ़-लिख के क्या करेगा? शहर जाकर भी तो मज़दूरी ही करनी पड़ेगी!”
लेकिन अर्जुन के सपने बड़े थे। वह रात में लालटेन की रोशनी में पढ़ते-पढ़ते सो जाता। मां गोविंदी उसके बालों में हाथ फेरती रहती –
“मेरा बेटा बड़ा आदमी बनेगा।”
एक बार गांव में मेला लगा। अर्जुन ने वहाँ एक बड़ा उद्योगपति देखा – विक्रम सिंह। सूट-बूट में गाड़ी से उतरा। लोग पैर छू रहे थे। अर्जुन ने पहली बार देखा कि इज़्ज़त पैसे से मिलती है। उस दिन उसके मन में बीज पड़ा –
“मैं भी बड़ा आदमी बनूंगा। सब मुझे सलाम करेंगे।”
पर गरीबी आसान नहीं थी।
कभी घर में अनाज नहीं होता।
रामकिशोर बीमार पड़ा।
अर्जुन को खेतों में मज़दूरी करनी पड़ी।
मगर उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। गांव में लोग हंसते –
“पंडित बन रहा है ये मजदूर का छोरा।”
अर्जुन ने कसम खाई –
“देख लेना, एक दिन मैं सबको बताऊंगा कि गरीब का बेटा भी बड़ा आदमी बन सकता है।”
उसकी उम्र 17 साल हुई तो उसने ठान लिया – शहर जाकर पढ़ेगा। मां-बाप रोए, मगर उसने समझाया –
“मैं लौटूंगा तो आपको महल में रखूंगा।”
मां ने अपने पुराने चांदी के कड़े उसे देकर कहा –
“बेटा, इसे बेच देना पर पढ़ाई मत छोड़ना।”
अर्जुन ने मां-बाप को गले लगाया, और गांव से शहर की ओर निकल पड़ा। आंखों में आंसू थे, मगर सपनों की चमक उससे भी ज्यादा थी।
अध्याय 2 – शहर का संघर्ष
अर्जुन पहली बार शहर आया। भीड़, शोर, चमकती लाइटें – सब उसे अजीब लगता था। जेब में मां के दिए चांदी के कड़े थे और दिल में उम्मीद।
वह एक सरकारी कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचा। फीस सुनकर उसकी आंखें भर आईं।
“इतने पैसे कहां से लाऊं?”
उसने मां का कड़ा बेचा और फीस जमा की। खाने के पैसे नहीं बचे। कई दिन भूखा रहा।
फुटपाथ पर सोया। एक चायवाले रमेश ने उसे देखा।
“क्यों बेटा, कहां से आए हो?”
“गांव से, पढ़ने।”
“भूखा है?”
“हाँ…”
रमेश ने उसे मुफ्त में खाना दिया।
“मेरे यहां बर्तन मांज दिया कर, खाना मिल जाएगा।”
अर्जुन ने हां कर दी। सुबह कॉलेज, शाम को बर्तन। बाकी समय पढ़ाई।
क्लास में अमीर लड़के उसे गरीब समझकर चिढ़ाते।
“भइया, ज़रा हमारी सीट भी साफ कर दो!”
“फुटपाथ वाला स्टूडेंट!”
अर्जुन कुछ नहीं कहता, बस किताब में झुक जाता।
एक दिन लाइब्रेरी में उसकी मुलाकात सिया से हुई।
सिया एक अमीर घर की पढ़ी-लिखी, समझदार लड़की थी।
सिया ने देखा – अर्जुन फटी किताबों से पढ़ रहा है।
“ये किताबें इतनी खराब हालत में क्यों हैं?”
“पैसे नहीं हैं नई खरीदने के।”
“तुम्हें पढ़ना अच्छा लगता है?”
“बहुत। मैं बड़ा आदमी बनूंगा।”
सिया हंस दी –
“अच्छा सपना है। जरूरत हो तो मेरी किताबें ले लेना।”
धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। सिया उसकी मेहनत देखकर प्रभावित हुई। वह उसे नोट्स देती, सवाल समझाती।
लेकिन अर्जुन को लगता –
“मैं गरीब हूं। मैं इससे दोस्ती के लायक भी नहीं हूं।”
एक दिन अर्जुन बीमार पड़ा। बुखार में फुटपाथ पर पड़ा कांप रहा था। सिया उसे देखकर रो पड़ी। वह उसे डॉक्टर के पास ले गई।
“पागल हो? ऐसे मर जाओगे?”
“मर भी गया तो क्या? गरीब की मौत कौन पूछेगा…”
सिया ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया।
“जब तक मैं हूं, ऐसा मत कहना।”
उसी दिन अर्जुन ने ठान लिया –
“मैं इसके काबिल बनूंगा। मैं बड़ा आदमी बनूंगा, सिर्फ अपने लिए नहीं – इसके लिए भी।”
मगर असली संघर्ष तो अभी शुरू हुआ था।
कैंपस में प्लेसमेंट शुरू हुए। अमीर बच्चों के पास सिफारिशें थीं। अर्जुन को हर कंपनी ने रिजेक्ट कर दिया।
“हम ऐसे बैकग्राउंड के लोगों को नहीं लेते।”
“हम एक्सपीरियंस चाहते हैं।”
उसे लगा –
“क्या गरीब का बेटा कभी जीत नहीं सकता?”
लेकिन तभी उसके दिमाग में एक बिज़नेस आइडिया आया।
“अगर कोई नौकरी नहीं देगा, तो मैं अपना काम शुरू करूंगा।”
उसने तय किया –
“अब से मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगा।”
💖 अध्याय 3 – सिया से मुलाकात और प्यार की शुरुआत
अर्जुन ने अपने दिल में ठान लिया था – नौकरी भले न मिले, मगर वो हार नहीं मानेगा। उसने बिज़नेस आइडिया पर काम शुरू किया।
दिन में कॉलेज के प्रोजेक्ट, शाम को चायवाले रमेश की दुकान में काम और रात को फुटपाथ पर बैठकर अपने आइडिया के नोट्स बनाना।
वह चाहता था – गांव के किसानों के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना जहां वे अपनी फसल सीधे बेच सकें। बिचौलियों को हटाकर उन्हें अच्छा दाम मिले।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल था – पैसे कहां से आएं?
एक दिन लाइब्रेरी में सिया ने उसे परेशान देखा।
“क्या हुआ अर्जुन? पढ़ाई नहीं कर रहे?”
“सपना बड़ा है, जेब खाली है।”
सिया मुस्कुराई –
“मुझसे शेयर करोगे?”
अर्जुन हिचकिचाया, फिर बोला –
“मैं किसानों के लिए ऐप बनाना चाहता हूं। उन्हें फायदा हो और मैं भी कुछ कमा सकूं। मगर मुझे कोडिंग नहीं आती, पैसे भी नहीं हैं।”
सिया की आंखों में चमक आ गई।
“मैं कंप्यूटर साइंस पढ़ती हूं। मैं कोडिंग जानती हूं।”
अर्जुन चौंका।
“तुम मदद करोगी?”
“हां। लेकिन एक शर्त पर।”
“क्या?”
“तुम अपनी पढ़ाई मत छोड़ना।”
अर्जुन की आंखें भर आईं।
“तुम्हें पता है सिया, मैंने आज तक किसी पर भरोसा नहीं किया।”
“आज से कर लो।”
दोनों ने हाथ मिलाया।
दिन-रात की मेहनत शुरू हो गई। कॉलेज लाइब्रेरी, कैफे, रमेश की दुकान के पीछे – जहां जगह मिलती, दोनों बैठकर काम करते।
सिया ने उसे कोडिंग सिखाई। अर्जुन ने किसानों के डेटा जुटाए।
धीरे-धीरे एक छोटा-सा प्रोटोटाइप ऐप तैयार हो गया।
काम के बीच हंसी-मजाक भी चलता।
“अर्जुन, तुम्हें पता है तुम बहुत सीरियस हो।”
“क्योंकि मैं गरीब हूं।”
“अब हंसो। देखो, तुम्हारा ऐप बन रहा है।”
अर्जुन पहली बार खुलकर हंसा। सिया को उसका मुस्कुराना बहुत अच्छा लगा।
एक दिन बारिश हो गई। दोनों कॉलेज से निकल नहीं पाए। बरसात के पानी में भीगते हुए, सिया ने उसकी आंखों में देखा।
“अर्जुन, तुम बदल जाओगे क्या? जब बड़े आदमी बन जाओगे?”
“कभी नहीं। मैं जो भी बनूंगा, तुम्हारे साथ बनूंगा।”
सिया का चेहरा लाल हो गया।
“मैं भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।”
उस दिन अर्जुन ने उसके हाथ पकड़कर कहा –
“एक दिन मैं तुम्हें तुम्हारे घर वालों से मांगूंगा। मगर जब मैं तुम्हारे लायक बन जाऊंगा।”
सिया की आंखों से आंसू गिर पड़े।
“मुझे तुम्हारे जैसा सच्चा इंसान चाहिए अर्जुन। तुम पहले से ही मेरे लिए सबसे बड़े आदमी हो।”
बरसात में भीगते हुए दोनों ने एक-दूसरे से प्यार कबूल किया।
पर उन्हें नहीं पता था – किसी और की नजर उन पर थी।
विक्रम सिंह – वही बड़ा उद्योगपति, जिसने गांव के मेले में अर्जुन को प्रभावित किया था – अब उसका सबसे बड़ा दुश्मन बनने वाला था।
अध्याय 4 – पहली नाकामी और विश्वासघात
अर्जुन और सिया ने मिलकर जो ऐप बनाया था, उसका नाम रखा – "कृषिसंगम"। ये एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म था जहां किसान सीधे खरीदारों से जुड़ सकते थे।
कॉलेज का आखिरी साल चल रहा था। दोनों को उम्मीद थी कि जैसे ही ऐप लॉन्च होगा, कोई निवेशक (investor) उसमें पैसा लगाएगा।
अर्जुन ने एक स्टार्टअप प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जहां देश भर के युवा अपने आइडिया पिच कर रहे थे।
वह मंच पर आत्मविश्वास से गया, ऐप की प्रस्तुति दी।
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। जजेस ने तारीफ़ की।
और फिर... वह आया।
विक्रम सिंह, नामी उद्योगपति और उस प्रतियोगिता का मुख्य अतिथि।
विक्रम ने मुस्कुराकर अर्जुन से पूछा –
"तुम्हारा नाम क्या है, लड़के?"
"अर्जुन, सर। गांव से हूं, लेकिन सपना बड़ा है।"
"हम्म... दिलचस्प। संपर्क में रहना।"
विक्रम की आंखों में कुछ और था – एक गहरी चालाकी।
कुछ हफ्तों बाद...
कॉलेज खत्म हुआ। अर्जुन अपने ऐप को असली दुनिया में लॉन्च करना चाहता था। लेकिन एक झटका मिला।
एक दिन सिया भागते हुए आई।
“अर्जुन! देखो ये न्यूज!”
एक बड़ा उद्योगपति – विक्रम सिंह – ने एक नया ऐप लॉन्च किया था – नाम था "ग्रामकनेक्ट"।
फीचर्स वही थे जो अर्जुन के ऐप में थे। UI/UX भी वैसा ही।
अर्जुन सन्न रह गया।
“ये... ये तो मेरा आइडिया है! सब कुछ कॉपी किया है!”
सिया बोली –
“तुम्हारे प्रेज़ेंटेशन के बाद इसने सब नोट किया होगा।”
अर्जुन का सिर चकरा गया।
“मैंने उस दिन अपना कोड भी दिखा दिया था… मैंने तो... भरोसा किया था...”
उसकी आंखों में आंसू आ गए।
“पहली बार किसी ने मुझसे धोखा किया है – और वो भी वो आदमी, जिसे देखकर मैंने सपने देखना शुरू किया था।”
सिया ने उसका हाथ पकड़ा।
“अर्जुन, हार मानने का वक्त नहीं है।”
अर्जुन बुरी तरह टूट चुका था। उसके पास पैसे नहीं थे, ऐप लॉन्च करने की क्षमता नहीं थी। यहां तक कि अब बाजार में वही आइडिया पहले से मौजूद था – बड़े ब्रांड के नाम से।
वह फुटपाथ पर बैठ गया।
“मैंने सब कुछ खो दिया। सपना, मेहनत, भरोसा…”
तभी पीछे से आवाज़ आई –
“शायद नहीं... अब वक्त है असली लड़ाई का।”
अर्जुन मुड़ा – सामने खड़ी थी नीलम सिंह – विक्रम सिंह की छोटी बहन।
उसकी आंखों में सच्चाई थी।
“मैं जानती हूं कि मेरे भाई ने क्या किया है। मैं चाहती हूं कि तुम उसका सच सबके सामने लाओ – और मैं तुम्हारी मदद करूंगी।”
अर्जुन चौंका।
“तुम अपने ही भाई के खिलाफ?”
“हाँ। क्योंकि तुम सही हो, और वो गलत।”
उस दिन अर्जुन ने फैसला किया –
“अब खेल बदलूंगा। अगर मेरा सपना छीना गया है, तो मैं उससे भी बड़ा सपना गढ़ूंगा।”
अध्याय 5 – दुश्मन का षड्यंत्र और नई रणनीति
अर्जुन की आंखों में आंसू थे लेकिन अब उसमें नफ़रत की आग भी जलने लगी थी।
विक्रम ने उसका सपना चुराया, उसकी मेहनत को अपने नाम कर लिया, और उसे मिट्टी में मिला दिया।
नीलम ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
“मैं तुम्हें सबूत दूंगी कि मेरे भाई ने तुम्हारा प्रोजेक्ट चुराया है।”
“तुम्हें क्यों करना है ये सब?”
“क्योंकि मुझे शर्म आती है कि मैं उसके परिवार में हूं। और तुम... तुम सच्चे हो अर्जुन।”
अर्जुन ने एक गहरी सांस ली।
“ठीक है। लेकिन मुझे सिर्फ बदला नहीं लेना, मुझे उससे बड़ा बनना है।”
🔎 नीलम की मदद
नीलम ने अपने भाई के ऑफिस से कुछ गोपनीय दस्तावेज चुराए।
अर्जुन के ऐप के असली डिज़ाइन का प्रिंटआउट
प्रेज़ेंटेशन स्लाइड्स की तस्वीरें
ईमेल्स जहां विक्रम ने अपनी टीम को अर्जुन का आइडिया कॉपी करने का आदेश दिया था
अर्जुन ने देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
“उसने मेरी ज़िंदगी का मज़ाक बना दिया...”
“अब तुम इसे प्रेस को दे सकते हो।”
“नहीं,” अर्जुन ने कहा।
“पहले मैं उससे बड़ा बनूंगा – फिर उसका सच सामने लाऊंगा।”
🗺️ नई रणनीति
अर्जुन ने ठान लिया –
✅ उसे ऐसा बिज़नेस मॉडल चाहिए जो ग्रामकनेक्ट से भी आगे हो
✅ किसानों को ज्यादा फायदा दे
✅ और पूरी तरह पारदर्शी हो
वह दिन-रात रिसर्च करने लगा।
सिया उसके साथ थी।
“अर्जुन, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी।”
“सिया, ये रास्ता मुश्किल है।”
“मुझे परवाह नहीं।”
रमेश चायवाले ने भी मदद की –
“बेटा, मेरी दुकान में बैठकर इंटरनेट चला ले। पैसे मत देना।”
गांव के अपने दोस्तों से अर्जुन ने बात की।
“तुम्हें किस चीज़ की सबसे ज्यादा जरूरत है?”
“सही दाम और भरोसे का सौदा।”
“बीज और खाद सस्ता चाहिए।”
“सरकारी स्कीम की जानकारी।”
अर्जुन को समझ में आया –
“मेरी गलती थी कि मैं सिर्फ खरीदार और किसान को जोड़ना चाहता था। मैं किसानों की पूरी जिंदगी बदलना चाहता हूं – पूरी सप्लाई चेन में पारदर्शिता लानी होगी।”
⚙️ नई टीम
नीलम ने कहा –
“मैं तुम्हारे प्रोजेक्ट में निवेश करूंगी। तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा।”
अर्जुन ने उसे देखा –
“तुम विक्रम की बहन हो।”
“मगर मैं उसके जैसी नहीं हूं।”
“ठीक है। लेकिन मैं तुम्हें एक बात साफ कह दूं – मैं किसी के आगे झुकूंगा नहीं।”
“मुझे यही चाहिए अर्जुन। यही वजह है कि मैं तुम्हारे साथ हूं।”
सिया और नीलम – दोनों ने उसके साथ मिलकर नई टीम बनाई।
कुछ सॉफ्टवेयर इंजीनियर दोस्त
गांव के कुछ पढ़े-लिखे नौजवान
पुराने किसानों के समूह
अर्जुन ने नाम रखा – “कृषि-संघर्ष”
“क्यों?” सिया ने पूछा।
“क्योंकि ये सिर्फ ऐप नहीं है, ये आंदोलन है – किसानों को उनके हक के लिए।”
⚡ षड्यंत्र की आहट
इधर विक्रम भी चुप नहीं बैठा।
उसे पता चला कि अर्जुन फिर से सक्रिय है।
उसने अपने मैनेजर से कहा –
“इस गरीब को कुचल दो। खरीद लो उसके लोग, डराओ धमकाओ – लेकिन इसे खत्म कर दो।”
अर्जुन की टीम के एक लड़के को धमकी मिली।
किसी ने अर्जुन पर हमला भी कराया – उसे हल्की चोटें आईं।
सिया रो पड़ी –
“तुम मर जाओगे अर्जुन!”
“अगर डर गया तो सब खत्म हो जाएगा। मैं लड़ूंगा।”
उस रात अर्जुन ने लालटेन में बैठकर अपनी डायरी में लिखा –
“गरीब का बेटा हूं, हारा तो सब हारेगा। लड़ा तो सब लड़ पाएंगे।”
अध्याय 6 – संघर्ष का आंदोलन और पहला बड़ा वार
अर्जुन ने अपनी चोट पर पट्टी बांधी।
आंखों में लाल डोरे थे।
वह डरने नहीं वाला था।
उसने अपनी टीम को बुलाया।
“सब सुनो! अब वक्त है गांव-गांव जाने का। किसान हमारा ऐप तभी अपनाएंगे जब उन्हें भरोसा होगा। हम शहर में बैठकर क्रांति नहीं कर सकते।”
सिया ने कहा –
“मैं भी चलूंगी।”
“नहीं सिया। तुम्हें यहीं रहकर टेक टीम संभालनी है। कोई हम पर साइबर अटैक कर सकता है।”
“मैं तुम्हारे बिना…”
“सिया, ये हमारा सपना है। लेकिन अभी हमें बंटना पड़ेगा।”
नीलम ने कहा –
“मैं पैसे और मीडिया संभालूंगी।”
“तुम्हें सबूत भी संभालकर रखना है। सही वक्त पर सब सामने आएगा।”
🛤️ गांव-गांव अभियान
अर्जुन ने अपने पुराने गांव से शुरुआत की।
लोग उसे पहचानते थे।
“तू लौट आया अर्जुन?”
“मैं हारकर नहीं लौटा। मैं तुम्हें तुम्हारा हक दिलाने आया हूं।”
वह किसानों के बीच बैठा, उन्हें ऐप समझाया –
✅ “यहां से सीधे ग्राहक से बात करोगे।”
✅ “बीज और खाद सस्ता मिलेगा।”
✅ “सरकारी स्कीम की जानकारी।”
✅ “बिचौलिया नहीं होगा।”
कुछ लोग हंसे।
“तू गरीब लड़का हमें अमीर बनाएगा?”
“हां, क्योंकि मैं भी तुममें से हूं।”
धीरे-धीरे कुछ बूढ़े किसानों ने भरोसा किया।
“इसमें सच्चाई है।”
अर्जुन ने मोबाइल ट्रेनिंग कैंप लगाए।
रमेश भी उसके साथ गया –
“चाय बांटता हूं सबको – पर सुनना अर्जुन की बात!”
🗺️ आंदोलन का रूप
कई गांवों ने उसकी मुहिम अपना ली।
अर्जुन ने सोशल मीडिया पर किसानों के वीडियो डाले –
उनकी बातें
उनके सपने
उनकी तकलीफें
नीलम ने मीडिया में खबर छपवाई –
“गरीब लड़के की ऐप से किसानों की क्रांति।”
सिया ने रात-रात भर ऐप के फीचर सुधारे।
“अर्जुन, अब ये पहले से बेहतर है।”
⚡ विक्रम का पहला बड़ा वार
इधर विक्रम सिंह घबराया।
“ये लड़का गांव-गांव आग लगा देगा। इसे रोकना होगा।”
उसने एक चाल चली –
✅ अर्जुन के कुछ पुराने टीम मेंबरों को पैसा देकर खरीद लिया
✅ उनकी मदद से कृषि-संघर्ष ऐप को हैक करवा दिया
✅ उसमें किसानों का डेटा चुरा लिया
✅ फेक रिव्यू और फर्जी शिकायतें प्ले-स्टोर पर डलवा दीं
एक रात अर्जुन को सिया का कॉल आया –
“अर्जुन! हमारा ऐप डाउन हो गया है! सब जगह खराब रिव्यू हैं! प्ले-स्टोर ने इसे सस्पेंड कर दिया है!”
अर्जुन के पैरों तले जमीन खिसक गई।
“ये विक्रम की चाल है...”
“अब क्या करेंगे?”
“सबको इकट्ठा करो – हमें जवाब देना होगा।”
💥 सभा और जोशीला भाषण
अर्जुन ने गांव में सभा बुलाई।
किसान इकट्ठा हुए।
“तुमने हमें धोखा दिया अर्जुन!”
“हमारे डेटा का क्या होगा?”
“हमारा भरोसा क्यों तोड़ा?”
अर्जुन मंच पर चढ़ा।
उसकी आवाज कांप रही थी, मगर आंखों में आग थी।
“हाँ! गलती हुई! मैंने भरोसा किया गलत लोगों पर – लेकिन मैंने चोरी नहीं की!”
“मैं गरीब हूं, इसलिए मुझे गद्दार कहोगे? मेरे सपने सस्ते समझोगे?”
“अगर तुम साथ दो, तो मैं फिर से खड़ा हो जाऊंगा – अकेला भी पड़ा तो लड़ूंगा!”
किसानों में गूंज उठी –
“हम तुम्हारे साथ हैं अर्जुन!”
“हमारा बेटा है ये!”
“हमें तुम पर भरोसा है!”
अर्जुन के आंसू बह निकले।
❤️ अंत में उस रात
सिया ने अर्जुन का हाथ पकड़ा –
“तुम हारोगे नहीं अर्जुन।”
“नहीं सिया। अब ये सिर्फ मेरा सपना नहीं है – ये आंदोलन है।”
“मैं तुम्हारे साथ हूं। जीवनभर।”
अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा –
“मुझे तुमसे शादी करनी है सिया – लेकिन जब मैं ये लड़ाई जीत लूंगा।”
“मैं इंतजार करूंगी अर्जुन।”
अध्याय 7 – राजनीतिक साजिश, दिल की चोट और फिर उठ खड़ा होना
गांव के खेतों में हल्की ठंडक थी। अर्जुन अपने सपने को फिर से खड़ा करने में जुटा था। लेकिन इस बार दुश्मन सिर्फ विक्रम नहीं था – अब राजनीति भी उसकी राह में थी।
⚖️ सरकार की नजर
विक्रम सिंह को डर था कि अगर अर्जुन का आंदोलन बड़ा हो गया, तो उसका साम्राज्य डगमगा जाएगा।
इसलिए उसने अब राजनीति को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया।
📢 स्थानीय विधायक राघव यादव को उसने पैसे देकर अपने साथ मिला लिया।
राघव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा –
“कृषि-संघर्ष ऐप किसानों को गुमराह कर रहा है। इसके पीछे विदेशी फंडिंग है। हम इसकी जांच करवाएंगे।”
अर्जुन को समन मिला।
“सरकारी जांच बैठ गई है। तुम्हारा बैंक खाता, डेटा सब खंगाला जाएगा।”
सिया घबरा गई।
“अर्जुन... अब क्या होगा?”
“जो सच है, वो डरेगा क्यों?”
“पर ये राजनीति है – यहां सच नहीं चलता, ताकत चलती है।”
💔 दिल की चोट – सिया का अलग हो जाना
जैसे-जैसे दबाव बढ़ा, अर्जुन ने सिया से दूरी बनानी शुरू कर दी।
वह नहीं चाहता था कि सिया भी इस आग में जले।
एक दिन सिया ने कहा –
“तुम मुझसे क्यों दूर हो रहे हो?”
“क्योंकि मैं तुम्हें इस लड़ाई में घसीटना नहीं चाहता।”
“मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।”
“लेकिन तुम्हें रहना होगा।”
सिया की आंखों से आंसू बह निकले।
“ये लड़ाई सिर्फ तुम्हारी नहीं है अर्जुन... ये हमारी थी।”
“और मैं तुम्हें उससे पहले जीतते देखना चाहती थी… इससे पहले कि हम शादी करें।”
अर्जुन ने कुछ नहीं कहा।
वो बस उठकर चला गया।
🥀 अर्जुन अकेला पड़ गया
अब टीम भी डरी हुई थी।
एक इंजीनियर ने इस्तीफा दे दिया
मीडिया ने उसके खिलाफ झूठी खबरें छापीं
किसान भी दोबारा डगमगाने लगे
रमेश चायवाला उसके पास आया –
“बेटा, सब छूट गया?”
“शायद... मेरी किस्मत में जीत नहीं थी।”
“तो क्या करेगा अब?”
“जो करता आया हूं... फिर से शुरू करूंगा।”
अर्जुन फिर से अकेले गांव गया।
इस बार बिना मीडिया, बिना टीम, बिना मोबाइल ऐप।
सिर्फ खुद।
🌾 खेतों में उम्मीद
एक बूढ़े किसान ने उसे देखा और कहा –
“तू फिर आया?”
“हाँ बाबा, लेकिन इस बार सिर्फ सुनने आया हूं।”
वो खेतों में बैठा। किसानों से उनकी परेशानियां पूछीं।
साथ में हल चलाया। धूप में बोरियों में अनाज भरा।
कुछ दिनों बाद वही किसान बोले –
“हमें ऐप की ज़रूरत नहीं, हमें तेरे जैसे बेटे की ज़रूरत है।”
“तेरा सपना हमारा सपना है।”
⚡ नीलम की वापसी – नया हथियार
इसी बीच नीलम वापस लौटी।
उसके पास एक USB थी – जिसमें था विक्रम सिंह का सबसे बड़ा राज।
“मेरे भाई ने सिर्फ तुम्हारा आइडिया नहीं चुराया, उसने सरकारी अफसरों को घूस देकर किसानों की ज़मीनें हड़पने का प्लान बनाया है।”
“ये सब रिकॉर्डिंग्स हैं।”
अर्जुन के चेहरे पर एक दृढ़ मुस्कान लौटी।
“अब वक्त है असली वार का।”
🧨 अंत में...
अर्जुन ने प्रेस बुलाया।
मंच पर चढ़कर उसने कहा –
“मैं किसी पार्टी से नहीं, किसी कंपनी से नहीं। मैं खेत से आया हूं – और खेत के लिए ही जिंदा रहूंगा।”
“आज मैं वो सच दिखाऊंगा जिसे छुपाया गया...”
और उसने वह USB चलाई।
पूरा मीडिया हिल गया।
विक्रम सिंह की घोटालों की फाइलें उजागर हो गईं।
विधायक राघव की कॉल रिकॉर्डिंग भी सामने आ गई।
अर्जुन के प्रेस कॉन्फ़्रेंस के अगले दिन पूरे इलाके में भूचाल आ गया।
विक्रम सिंह का नाम अख़बारों में छपा –
“किसानों की ज़मीनें हड़पने की साजिश!”
“गरीब लड़के ने उद्योगपति का घोटाला खोला!”
📢 जनता का समर्थन
गांव-गांव में चर्चा होने लगी –
“अर्जुन ने सच दिखा दिया।”
“हमारा बेटा है वो।”
“वो नहीं डरता किसी से।”
किसानों ने पंचायतों में प्रस्ताव पास किया –
✅ “हम कृषि-संघर्ष ऐप का समर्थन करेंगे।”
✅ “सरकारी जांच की मांग करेंगे।”
✅ “विक्रम सिंह के सामान का बहिष्कार करेंगे।”
रमेश चायवाला अर्जुन के साथ खड़ा था –
“तू बोल बेटा – मैं सब गांव में खबर फैला दूंगा।”
“रमेश चाचा, अब लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं – सबकी है।”
⚖️ कानूनी मोर्चा
नीलम ने अर्जुन को समझाया –
“अब मीडिया में घोटाला उजागर हो गया है – लेकिन विक्रम जेल जाने से नहीं डरेगा।”
“तो क्या करें?”
“कानूनी केस डालना होगा – पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन।”
अर्जुन ने तय किया –
✅ वकीलों से सलाह ली
✅ किसानों के दस्तखत लिए
✅ घूसखोरी और जमीन हड़पने के दस्तावेज कोर्ट में जमा किए
हाईकोर्ट में केस फाइल हुआ:
“किसानों की जमीन हड़पने की साजिश में उद्योगपति विक्रम सिंह की जांच की मांग।”
⚔️ विक्रम का जवाबी हमला
विक्रम सिंह ने भी वकील खड़े कर दिए।
उसने अर्जुन को धमकी दी –
“मुकदमा वापस ले ले, वरना तेरी मौत पक्की।”
“मैं मर भी गया तो ये आंदोलन नहीं रुकेगा।”
विक्रम ने अर्जुन के बैंक अकाउंट फ्रीज करवाने की कोशिश की।
मीडिया में झूठ फैलाया –
“अर्जुन विदेशी फंडिंग ले रहा है।”
“उसका ऐप डेटा बेचता है।”
💔 सिया की चुप्पी
इस बीच अर्जुन और सिया में बोलचाल बंद थी।
सिया शहर लौट गई थी।
अर्जुन हर रात उसकी तस्वीर देखता और कहता –
“मैं तुम्हें दोबारा पाने लायक बनूंगा।”
🧭 योजना – जनमत तैयार करना
नीलम ने कहा –
“विक्रम ताकतवर है, केस को सालों तक लटकाएगा।”
“तो क्या करें?”
“जनता को जोड़ो। ये जनता का आंदोलन बनाओ।”
अर्जुन ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया –
✅ #कृषि_संघर्ष
✅ “किसान का बेटा किसान के हक़ में”
✅ लाइव वीडियो – गांवों से, खेतों से
अर्जुन ने हर गांव जाकर जनसभा की –
“ये लड़ाई कोर्ट में भी लड़ी जाएगी और सड़क पर भी।”
“किसान बिकाऊ नहीं है।”
“मैं अकेला नहीं हूं – मैं तुम सबका बेटा हूं!”
🌄 आंदोलन का विस्तार
पास के जिलों में भी समर्थन बढ़ा
छात्र संगठन जुड़े
मीडिया में बहस छिड़ी – “गरीब का लड़का बनाम उद्योगपति”
अर्जुन ने नई टीम बनाई –
✅ किसान नेताओं से बातचीत
✅ ऐप का नया संस्करण – पूरी तरह ओपन-सोर्स
✅ पूरी टीम में पारदर्शिता
⚡ नाटकीय मोड़ – कोर्ट में सबूत
अर्जुन और नीलम कोर्ट पहुंचे।
विक्रम के वकील ने कहा –
“इनके पास पुख्ता सबूत नहीं हैं।”
नीलम ने USB दिखाई –
✅ सरकारी अफसरों की घूस की रिकॉर्डिंग
✅ जमीन के फर्जी दस्तावेज
✅ ईमेल जिसमें किसानों की लिस्ट मांगी गई थी
जज ने सुनकर कहा –
“यह गंभीर मामला है – पुलिस को जांच का आदेश।”
कोर्ट रूम में सन्नाटा था।
विक्रम के चेहरे का रंग उड़ गया।
अर्जुन ने आंखें बंद कर लीं और मन में बोला –
“मां, तेरा बेटा झुका नहीं।”
❤️ अध्याय का अंत
रात को गांव लौटा तो रमेश चाचा ने गले लगा लिया।
“तू जीत गया बेटा।”
“अभी नहीं चाचा। अभी ये लड़ाई बाकी है।”
नीलम ने मुस्कुरा कर कहा –
“अब तुम सच में नेता बन गए अर्जुन।”
“नेता नहीं... मैं बस किसान का बेटा हूं।”
अर्जुन ने मोबाइल निकाला।
सिया की तस्वीर देखी और धीमे से बोला –
“सिया... मैंने कहा था ना, मैं हारूंगा नहीं।”
अध्याय 9 – आखिरी संघर्ष, प्यार की वापसी और विजय की सुबह
कोर्ट का आदेश मिलते ही पूरा राज्य हिल गया।
जांच बैठ गई। पुलिस अफसर अर्जुन के गांव पहुंचे।
किसानों ने खुशी से उनका स्वागत किया –
“हम सब गवाही देंगे!”
“अर्जुन ने हमें जगाया है!”
⚔️ विक्रम सिंह की आखिरी चाल
विक्रम सिंह ने देखा कि अब उसका खेल खत्म हो रहा है।
उसने एक आखिरी घिनौनी चाल चली।
✅ उसने अर्जुन का अपहरण करवाने की योजना बनाई।
✅ उसके गुंडे रात में अर्जुन के गांव पहुंचे।
अर्जुन खेत में सो रहा था।
चार लोग उसे पकड़कर गाड़ी में डालने लगे।
रमेश चाचा ने देखा।
“अर्जुन!! छोड़ दो उसे!”
वो चिल्लाया, पत्थर मारा –
गांव वाले जाग गए।
हंगामा मच गया।
गांव वालों ने गुंडों को घेर लिया।
अर्जुन ने उनके हाथ से छुरा छीन लिया।
एक गुंडे को पकड़कर बोला –
“जा विक्रम से कह दे – किसान का बेटा बिकता नहीं, डरता नहीं।”
गांव वालों ने बाकी गुंडों को भगा दिया।
⚖️ अदालत का फैसला
जांच के सबूत इतने ठोस थे कि विक्रम सिंह पर केस चल पड़ा।
उसकी संपत्ति सील हुई।
मीडिया ने लाइव रिपोर्टिंग की –
“गरीब लड़के ने भ्रष्ट उद्योगपति को घुटनों पर ला दिया!”
जज ने कहा –
✅ “सरकारी अफसरों की भूमिका की भी जांच होगी।”
✅ “किसानों को हर्जाना मिलेगा।”
✅ “ऐसे ऐप्स और टेक्नॉलॉजी के विकास को बढ़ावा दिया जाए।”
🌾 अर्जुन की जीत
अर्जुन ने उस दिन खेत में जाकर मिट्टी उठाई।
“मां, तेरे बेटे ने ये लड़ाई जीत ली।”
रमेश चाचा ने उसके सिर पर हाथ फेरा –
“अब तेरा सपना साकार हो गया बेटा।”
किसान उसके पास आए –
“हम तेरा ऐप फिर से डाउनलोड करेंगे।”
“अब भरोसा कभी नहीं टूटेगा।”
“तू ही हमारा नेता है अर्जुन!”
अर्जुन ने हाथ जोड़कर कहा –
“मैं नेता नहीं – तुम्हारा बेटा हूं। ये ऐप तुम्हारा है। तुम्हारी ताकत।”
❤️ सिया की वापसी
सिया चुपचाप गांव आई।
अर्जुन उसे देखकर कुछ पल चुप रहा।
सिया की आंखों में आंसू थे।
“मैंने कहा था अर्जुन – तुम हारोगे नहीं।”
“तुमने मुझसे दूर जाने के लिए कहा था – लेकिन मेरा दिल तुम्हारे पास ही रहा।”
“अब कोई दूरी नहीं सिया।”
अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ा।
“अब मेरी जिंदगी में सिर्फ सच होगा। तुम्हारे बिना कुछ नहीं।”
“मुझसे शादी करोगे?”
“सिया, मैं तो उसी दिन से तुम्हारा हूं – जब तुमने मेरा सपना अपना कहा था।”
दोनों गले लग गए।
गांव वालों ने तालियां बजाईं।
🌄 विजय की सुबह
कृषि-संघर्ष ऐप का नया संस्करण लॉन्च हुआ।
इस बार –
✅ पूरी तरह ओपन-सोर्स
✅ किसान-समिति द्वारा मॉनिटर
✅ पारदर्शी भुगतान
सरकार ने इसे पूरे राज्य में लागू किया।
अर्जुन ने पहली ट्रेनिंग क्लास में किसानों से कहा –
“ये ऐप एक सपना है। तुम्हारा और मेरा।
हमारी मिट्टी से, हमारे पसीने से।
अब कोई बिचौलिया नहीं। कोई धोखा नहीं।
किसान झुकेगा नहीं।
किसान जीतेगा!”
..
गांव के मंदिर में अर्जुन और सिया की शादी हुई।
रमेश चाचा ने कन्यादान किया।
नीलम ने मंगलसूत्र पहनाने में मदद की।
किसान पूरे गांव से आए।
फेरों के बाद अर्जुन ने कहा –
“अब हम पति-पत्नी ही नहीं – इस आंदोलन के साथी भी हैं।”
सिया ने मुस्कुरा कर कहा –
“जिंदगीभर।”
“कहानी एक गरीब लड़के की थी – जिसने सपना देखा, उसे सच किया।
जिसने प्यार पाया, और सबका भरोसा भी।
जिसने दिखा दिया कि किसान का बेटा भी इतिहास लिख सकता है।
G D PANDEY
No comments:
Post a Comment