1
सुरसती !
त्र्पाजू कंठ में त्र्पावऽ
जुग जुग
से ई परल संकेता, एकर कंठ
रून्हाइल ।
लड़त लड़त
बैरिन से भोजपुर थाकल त्र्पा त्र्पाउंघाइल ।।
हिया कमल
विकसावऽ, एके जुग
संदेस सुनावस ।
सुरसती ! जुग संदेस सुनावऽ ।
सुरसती ! त्र्पाजु कंठ में त्र्पावऽ ।।
2
संस्कृत
भासा खातिर ई तऽ त्र्पापन
देह गलवलसी ।
हिंदी अंग्रेजी पर अपना उर के नेह
चढ़वलसी ।।
अपनी
भासा खातिर एकरा मन में प्रेम जगावऽ
सुरसती ! मन में प्रेम जगावऽ ।
सुरसती ! आजु कंठ में आवऽ ।।
3
नया छंद
दऽ, नया काब्य दऽ, नई गोति दऽ मइया ।
छितराइल
भोजपुरियन में तूं नई प्रीति दऽ मइया । ।
नइया
भोजपुरियन के माता ! हंसी के
पार लगावऽ
सुरसती ! हंसी के पार लगावऽ ।
सुरसती !
आजु कंठ में आवऽ । ।
कवि - स्व. डा. रामविचार पाण्डेय (भोजपुरी रत्न )
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