Tuesday, May 12, 2020

सुरसती जी के वन्दना (Bhojpuri)


सुरसती ! त्र्पाजू  कंठ  में त्र्पावऽ 
जुग जुग से ई परल संकेता, एकर कंठ रून्हाइल 
लड़त लड़त बैरिन से  भोजपुर  थाकल  त्र्पा   त्र्पाउंघाइल ।।
हिया कमल विकसावऽ, एके जुग संदेस सुनावस ।
                      सुरसती ! जुग संदेस सुनावऽ
                      सुरसती ! त्र्पाजु कंठ में त्र्पावऽ  ।।

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संस्कृत भासा खातिर ई तऽ त्र्पापन देह गलवलसी ।
हिंदी  अंग्रेजी पर अपना उर के नेह चढ़वलसी ।।
अपनी भासा खातिर एकरा मन में प्रेम जगावऽ 
                     सुरसती ! मन में प्रेम जगावऽ
                     सुरसती ! आजु कंठ में आवऽ ।।


नया छंद दऽ, नया काब्य दऽ, नई गोति दऽ मइया 
छितराइल भोजपुरियन में तूं नई प्रीति दऽ मइया  । ।
नइया भोजपुरियन के माता  ! हंसी के पार लगावऽ 
सुरसती  ! हंसी के पार लगावऽ 
सुरसती ! आजु कंठ में आवऽ । ।
कवि - स्व. डा. रामविचार पाण्डेय (भोजपुरी रत्न )


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