लिट्टी भंटा
खा भतीजा, भंटा लिट्टी खा
1
सासु पकाबसु, ससुर जेंवावसु
सरहज गावसु
गारी ।
निहुरि
निहुरि के सार परोससु
तब खा दही
सोहारी ॥
त्र्प्रपना
घरे गवे गवे,
लिट्टी भंटा
कहा भतीजा, भंटा लिट्टी कहा ॥
2
भतीजा कबे
कचहरी, जो जा,
पूरा रुपया
लेलऽ ।
जे, जंहवां, जेतना, जब मांगे,
चुप से
त्र्प्रोके देदऽ ॥
जो कानून
बोकरलऽ तऽ बस,
पिनिकल घरे
जा भतीजा ।
त्र्प्रोही
जां कोणचरां बइठि के
3
तबो तऽ तूं जेहल कटलऽ
त्र्प्रबो
जेहल काटऽ।
जो सिद्धांत
बघारे के बा
बासी महिया
चाटऽ ॥
झट दे कवनो
चाल लगा के
तूं हूँ
दिल्ली जा भतीजा।
तूं हूँ
दिल्ली जा
नाही तऽ जेहल में बइठल
लिट्टी भंटा
खा भतीजा, भंटा लिट्टी खा ॥
4
कहलऽ तऽ हम, बखरा दिहली
त्र्प्रब जो
तूं छरित्र्प्रइबऽ ।
दवा पुरनकी
होई तूं
सज से
केहूनाठल जइबऽ॥
जो एइजा
होखे संकेत तऽ
त्र्प्रपना
हक पर जा भतीजा
त्र्प्रपना
हक पर जा
लिट्टी भंटा
खा भतीजा, भंटा लिट्टी खा ॥
कवि - स्व. डा. रामविचार पाण्डेय (भोजपुरी रत्न )
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