Saturday, May 2, 2015

एक महा विद्यालय में .... अशोक चक्रधर

अशोक चक्रधर

Ashok chakradhar.jpg
एक महा विद्यालय में 
नए विभाग के लिए
नया भवन बनवाया गया,
उसके उद्घाटनार्थ
विद्यालय के एक पुराने छात्र
लेकिन नए नेता को
बुलवाया गया।


अध्यापकों ने
कार के दरवाज़े खोले
नेती जी उतरते ही बोले—
यहां तर गईं
कितनी ही पीढ़ियां,
अहा !
वही पुरानी सीढ़ियां !
वही मैदान
वही पुराने वृक्ष,
वही कार्यालय
वही पुराने कक्ष।
वही पुरानी खिड़की
वही जाली,
अहा, देखिए
वही पुराना माली।


मंडरा रहे थे
यादों के धुंधलके
थोड़ा और आगे गए चल के—
वही पुरानी
चिमगादड़ों की साउण्ड,
वही घंटा
वही पुराना प्लेग्राउण्ड।
छात्रों में
वही पुरानी बदहवासी,
अहा, वही पुराना चपरासी।
नमस्कार, नमस्कार !
अब आया हॉस्टल का द्वार—
हॉस्टल में वही कमरे
वही पुराना ख़ानसामा,
वही धमाचौकड़ी
वही पुराना हंगामा।
नेता जी पर
पुरानी स्मृतियां छा रही थीं,
तभी पाया 
कि एक कमरे से 
कुछ ज़्यादा ही
आवाज़ें आ रही थीं।
उन्होंने दरवाजा खटखटाया,
लड़के ने खोला
पर घबराया।
क्योंकि अंदर एक कन्या थी,
वल्कल-वसन-वन्या थी।
दिल रह गया दहल के,
लेकिन बोला संभल के—
आइए सर !
मेरा नाम मदन है,
इससे मिलिए
मेरी कज़न है।

No comments:

Post a Comment