दतूत्र्प्रनि कइके चीरिके, फेके काठ घुमाई
इहे जगत के रीतिहS, काम सरकि जाइ
मनके नित निरखत रहS, मन हS बड़ा चूहाड़
छनमे कखर्ह से हेठवा, छन मे चढ़े पहाड़
साधू सन्यासी मुनि केतने गुनो हजार
मुत्र्प्रले जगत सुधारि के, झुकल न एकहू बार
जगके तबे सुधार बा, जब त्र्प्रापन करSसुधार
गाँव सफाई तब रही, जब त्र्प्रापन खोरि बहार
पतई जब पीत्र्प्ररि भइलि, भूइंया गिरली धधाइ
केहू केतनों ललकि ले, त्र्प्रत सरन भूइमाइ
नाव पुरानी, छेदनव, सागर बड़ा त्र्प्रथाह
राम नाम पतवार बा, उहे लगाई पाह
हरिके तजीके जीव ई, जग मे परल भुलान
त्र्प्रांहर भेभर सित्र्प्रार के, जस महुए पकवान
त्र्प्रपना के जे मानिले, हम सभले छछलोल
ई लच्छ्न हS मूढ़ के, उ पुरहर बकलोल
हड़बड़ हड़बड़ जे करे, त्र्प्रोकर काम नसाइ
मुंह बिजूकावे लोग सभ, उ घूमे मुंह बाई
सोना के मृग देखिके, जहुत्र्प्रइले जब राम
तब तूँ हूँ चिहुकुल रहS देखत चोकन चाम
त्र्प्रगना गह गह करत बा, सेजि उठली त्र्प्रगराई
जेके जोहत राहुबी सखि, उ चहूंपल बा त्र्प्राइ
टाठ रहS डापुट रहS, जो जोए के राइ
बनले मुंह दूबर इंहा, जग मे गुजर न बाइ
जो देहिए के बल सदा, दिहिते जग मे साथ
तब काहे के भीम जी, लिहितन कलछू ल हाथ
त्र्प्रोकर पढल त्र्प्रनेर बा, जेकरा कुछ न बुझाइ
काजर कइल त्र्प्रनेर बा, जो न त्र्प्राखि मटकाइ
झोट लहित्र्प्रनि के त्र्प्रादि से, भइलि बुद्धि बेहाथ
जग के मलकिनी लछिमिनी, लिहली बुद्धि बेहाथ
जग के मलकिनी लछिमिनी, लिहली उरुत्र्प्रा साथ
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