तुम हमे भूल मत जाना
क्यो त्र्प्रासु त्र्प्राज मचलते,
पलको से ठोकर खाकर
करुणा भर्राये स्वर मे,
कहती धीरे से त्र्प्राकर
तेरे सुख - स्वप्नों मे से
कोई जाने वाला है
वह एक पुष्प विछुड़ेगा
जो सुमनों की माला है
मधुमय मधुर मिलन मे
होगी विषाद की रेखा
सुख दुख त्र्प्राज करेगे
त्र्प्रापस मे लेखा जोखा
तुम जाते हो तो जात्र्पो
रोके हम कैसे जाना
पर सुख - स्वप्नों के जैसा
तुम हमे भूल मत जाना
कवि - स्व। डा. रामविचार पाण्डेय (भोजपुरी रत्न )
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