तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
1
जो भिड़ जावे बमगोलो से, टोपो, टैंको, त्र्प्रांगरों से
त्र्प्रपनी वीणा मुखरित करके, तलवारों का झंकारो से
जो त्र्प्रारि की छाती पर बैठा, नित राग प्रभाती गाता है
जिसकी हिम्मत दूनों होती, निशि दिन त्र्प्ररि के ललकारो से
मेधों सा जो गर्जन करता, बिजली सा चमक दमद बढ़ता
जो लीक खीच जाता है उसकी, लोग कहानी कहते है
जिसको सुन मुर्दे जग उठते, हम उसे जवानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
2
उन्नत नित्नब, उन्नत उरोज, बिम्बा फल सद्रश होठ लाल
भौरे से काले सघन बाल, रूई से सुंदर नरम गाल
गोरे तन पर तुम प्राण लूटा दो, मुझको कुछ एतराज नही
प्रक्रति पुरुष का त्र्प्राकर्षण यह त्र्प्रादि श्रष्टि की मधुर चाल
उनको लूटे त्र्प्रारि तुम भागो, यह तो पूरा हिजड़ा पन है
जब सब उनको दिलरुबा प्रिये, हृदयेशवरि, रानी कहते है
जो उनकी रक्षा कर सकती है, हम उसे जवानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
3
घासो की रोटी खाकर, जंगल जंगल मारा फिर कर
जो कभी नींद भर ना सोया, नित रहा बैरियो से घिर कर
महलो को छोड़ दिया जिसने, पत्तों के दोनों मे खाया
उस प्रताप की चरण धुली को, झुक त्र्प्रपने सिर पर धरकर
त्र्प्रबकरी मुगलिया हिम्मत भी, जिसकी हिम्मत से हार गई
हल्दी घाटी के पत्थर पत्थर कथा पुरानी कहते है
उन धूलकणो से जा पूछो कि किसे जवानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
4
धर्मभेद से जनता पर जब,, त्र्प्रत्याचार लगा होने
जज़िया कर से कांप उठा जब, भारत का कोने कोने
त्र्प्रोरंगजेब राक्षस ने जब, मुंह खोला सब कांप उठे
उठी एक तलवार कि उसका मुंह करदी रोने रोने
जिसके घोड़े कि टापो कि आवाज, त्र्प्राज भी गूंज रही
शिवा न होते, शिखा न रहती, पंडित ज्ञानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
5
नित नूतन शृंगार सजा, पुरुषो कि दासी बन जाये
फूलो सी कोमल बनकर, महलो कि वासी बन जाये
त्र्प्रादी शक्ति कि मूर्ति त्र्प्राज, बन गई मूर्ति है मिट्टी कि
हम खोज रहे है काली जो, रण त्र्प्रट्टाहासी बन जाये
दुष्टो कि गर्दन काट काट, धरती को लाल बना दे जो
हम उसे चडिके चामुंडे कालिका भवानी कहते है
लक्ष्मीबाई तलवार कहेगी, किसे जवानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
6
मजहब का नारा देकर के,जब त्र्प्ररी ने बड़ा प्रघात किया
उस्मान बीर को बहकाने की, लोभी लोभी बात किया
चौकन्ना था बीर को भला वह, बातो मे त्र्प्राता कैसे ?
त्र्प्रागे बढ़कर के दुश्मन की, छाती पर घाता घात किया
मादरे बतन के कदमो मे, उसने सर चढ़ा दिया त्र्प्रपना
जननी जन्म भूमि पर हम, उसको बलिदान कहते है
पाक के टूटे टैंक कहेगे, किसे जवानी कहते है
तुम जिसे जवानी कहते हो, हम तन का पानी कहते है ।
हम त्र्प्राज बताते है तुमको , हम किसे जवानी कहते है ।
कवि - स्व। डा. रामविचार पाण्डेय (भोजपुरी रत्न )
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