Monday, November 23, 2020

स्वागत गान

दर्दर की सुनी कुटिया मे , 
स्वागत तेरा स्वागत तेरा स्वागत है 
बलि की इस उजड़ी बलिया मे 
स्वागत तेरा त्र्प्रागत है 

बीणा के टूटे तारो मे 
सुंदर स्वर मै भर न सका 
माँ खंडित लूठित है भूपर 
स्वागत समुचित कर न सका 
जली पद्मिनी,बहने रोती, 
कन्याओ का हरणा हुत्र्प्रा 
सच पूछो तो डरा म्रत्यु से 
मै बीरों सा मर न सका 
इसी लिये कुंठित मानस है 
त्र्प्रोर त्र्प्राज मस्तक नत है 
दर्दर की सुनी कुटिया मे, स्वागत तेरा स्वागत है 
बलि की इस उजड़ी बलिया मे, स्वागत तेरा स्वागत है 

मै जीवित हूँ या शव सम हूँ 
इसका है कुछ ज्ञान नही 
कौन मित्र है त्र्प्रोर कौन त्र्प्ररि, 
त्र्प्रब इसकी पहचान नही 
अमृत समझा था जिसको, 
वह तो विष का प्याला निकला 
त्र्प्राज लाज पी जीता हूँ 
पर जीवन का कुछ मान नही 
त्र्प्रपना रोत्र्प्रा त्र्प्ररि बन बैठा 
हृदय निरंतर भय रत है 
दर्दर की सूनी कुटिया मे, 
स्वागत तेरा स्वागत है 
बलि की इस उजड़ी बलिया मे, 
स्वागत तेरा त्र्प्रागत है 

वस्त्र बिहीन स्वयम ही जब हूँ 
तेरे हेतु विछाऊ क्या ? 
भूखों त्र्प्राज तड़पते बच्चे 
तुमको कहों खिलाऊ क्या 
माला त्र्प्ररे ! बनाऊ कैसे ? 
सूखी त्र्प्राज सभी कलिया 
त्र्प्रपने तो त्र्प्रासू पीता हूँ 
तुमको कहों पिलाऊ क्या ? 
क्षमा त्र्प्रथिति करना मुझको, 
पागल हूँ सभी ज्ञान गत है 
दर्दर की सुनी कुटिया मे 
स्वागत तेरा स्वागत है 
बलि की इस उजड़ी बलिया मे 
स्वागत तेरा त्र्प्रागत है 

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