युग - पुकार पर जो ना दौड़े
वह होती धिक्कार जवानी
त्र्प्राई, गई त्र्प्रोस सी ढुलकी
वह होती बेकार जवानी
1
जो यौवन शय्या पर लुड़की
वह नीरी त्र्प्रययास जवानी
छोकरियों के पीछे दौड़े
वह पशुवत बदमास जवानी
समय दहाड़े, चुपहो बैठा
वह नर क्या है ? वह पत्थर है,
झंझावातो मे क्या खोती?
त्र्प्रपना होश हवास जवानी
वहाँ युवक बैठेगा चुप क्यो ?
जहां देश होता बेपानी
युग - पुकार पर जो ना दौड़े
वह होती धिक्कार जवानी
2
विश्व चकित है, त्र्प्राज हिन्द की
चढ़ी जवानी गुम सुम क्यो है ?
त्र्प्रगुत्र्प्रा बनने की क्षमता युत
पकड़ा वह पर की दुम क्यो है ?
जहां एकता का नारा था
फूट फैलती जाती फिर से
प्रांत भेद त्र्प्रो जाति भेद का
त्र्प्राज यहाँ नित हम तुम क्यो है ?
सुनो ! हिमालय मांग रहा है
लाल लाल कुछ तन का पानी
युग - पुकार पर जो ना दौड़े
वह होती धिक्कार जवानी
3
ताज महल तो बन सकता है
लेकर के मदहोश जवानी
पर जातिया बढ़ा करती है
जब होती बदहोश जवानी
देश प्रतिष्ठा घटती जाती
त्र्प्रोर युवक गण चुप बैठे है
सीमा सिमटी जाती है नित
भारत की बेहोश जवानी
जिधर देखलों दुश्मन करता
रात दिवस त्र्प्रपनी मन मानी
बूढ़ो का मुंह ताक रही है
युवा त्र्प्रवस्था बन बचकानी
युग - पुकार पर जो ना दौड़े
वह होती धिक्कार जवानी
4
मुख मे कुछ, त्र्प्रो मन मे कुछ है
ऐसा कबतक देश चलेगा ?
पर की भाषा बोल बोल कर
कबतक यह परिवेश चलेगा ?
त्र्प्रन्न वस्त्र बिन जनता रोती,
बाते उसे खिलाई जाती,
दु: शासन के कर मे कबतक
द्रुपद सुता का केश चलेगा ?
तेरे ही हाथो मे साथी !
है माता की लाज बचानी
जग गाली देगा यदि कर दी
तुमने इसमे त्र्प्रानाकानी
युग - पुकार पर जो ना दौड़े
वह होती धिक्कार जवानी
No comments:
Post a Comment