Monday, November 23, 2020

सुधि त्र्प्रावे त्र्प्रपना गांव की

पीपल जहाँ की मधुर पंखा डोलावे हंसी, 
ठंढई मिलेले जहाँ बरगद का छांव की 
होत भिनुसार जहाँ बाजत सहनाई नित 
चिरइन का चूं चूं चरखिन का चाँव चाँव की 
बछिया जहाँ कि चाटी चाटी त्र्प्रपना जिभिया से  
दूर करी देले नित थकावट हमरा पाँव की 
सहरन में घूमत रहीले तब त्र्प्रचके में 
रहि रहि के मधुर सुधि त्र्प्रावे त्र्प्रपना गांव की 

प्रेम त्र्प्रा मिलाप सांति जन जन का हियरा में 
बाटे त्र्प्राभाव पारटिन का काँव काँव की 
मंजू त्र्प्रा धमोइ बैरकंटी करेले जहाँ 
रइछा उचक्कन से मंडइन का ठाँव की 
राती खानी कुला बइठला पर त्र्प्रापूस में 
चरचा चलेले जहाँ राम कृष्ण नाव की 
सहरन में घूमत रहीले तब त्र्प्रचके में 
रही रही के मधुर सुधि त्र्प्रापना गाँव की 
बाटे सहकारीता के भाव जहाँ त्र्प्रापूस में 
नइखे ई भूखि बस हमही खाव खाव की 
सभ केहू सुखी रहो, गाँव ई सभकर हS
नइखे पित्र्प्रासि बस हमही बढ़ी जाँव की 
लरिका सभ खेलत जहाँ निर्भय हो गलीयन में 
डर नइखे मोटर का भो भो हाँव हाँव की 
सहरन में घूमत रहीले तब त्र्प्रचके में 
रहि रहि के मधुर सुधि त्र्प्रावे त्र्प्रपना गांव की 

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