Monday, November 23, 2020

बानी मांगता हूँ

नाथ ! बानी मांगता हूँ 

चाहता नहीं स्नेह पितु का, या जननी का प्यार पाउ 
या युवती के रूप का, शृंगार का उपहार  पाउ
जो कंपा दे पापियो को , वह जवानी मांगता हू  
नाथ बानी मांगता हूँ 

चाहता नही त्र्प्रायू - सागर की लहरिया शांत होवे 
मुक्ति मोती ढूढ्ने केपी भाव मम उध्दांत होंवे 
त्र्प्राज झंझावात बड़वानल  तूफानी मांगता हूँ 
नाथ बानी मांगता हूँ 

चाहता नही त्र्प्रायू - कानन पल्लवित मुकुलित फलित हो 
याकि कांटो से प्रपूरित कंटकित होकर कलित हो 
त्र्प्राज खांडव दहन को लपटे दीवानी मांगता हूँ 
नाथ बानो मांगता हूँ 

चाहता नही त्र्प्राज सुंदर कुसुम कोमल नारि होंवे 
मेनका, रंभा सद्रश या उर्वशी सुकुमारी होंवे 
त्र्प्राज दुर्गा, कलिका चंडी भवानी मांगता हूँ 

चाहता हूँ भूल जाऊ, शांत रस शृंगार करुणा 
त्र्प्रोर देखू रक्त से परिपूर्ण केवल नदी करुणा 
त्र्प्रोज केवल बीर रस की मै कहानी मांगता हूँ 
नाथ  बानी मांगता हूँ

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