Monday, November 23, 2020

मातु की कैसे लाज बचाऊ

देव ! त्र्प्राज यह खो मातु की, 
कैसे लाज बचाऊ ? 

गुरु गोविन्द बनू, सिंहो की 
अद्भुत पांति सजाऊ ? 
या संतावन की तलवारे
फिर से ले चमकाऊ ? 
लाठी खाता जेल चलूँ या 
ले खंजर उठि धाऊ ? 
देव ! त्र्प्राज यह कहो मातु की 
कैसे लाज बाछाऊ ? 

रास बिहारी या " विस्मिल " बन 
रोशन , भगत, कनहाई ? 
या त्र्प्राजाद चंद्रशेखर बन 
रिपु से करूँ लड़ाई ?
या सुभाष बनकर दुनिया को 
चकमा त्र्प्रजब पढ़ाऊ ? 
देव ! त्र्प्राज यह कहो मातु की 
कैसे लाज बचाऊँ ? 

पूर्ब - बंग के गाँव - गाँव मे 
रोती है मानवता रे !
मानवता को नष्ट करे त्र्प्रब 
हंस हंस कर दानवता रे ! 
मानवता को नष्ट करे त्र्प्रब 
सिसक सिसक मर जाऊ ?
देव ! त्र्प्राज यह कहो मातु की 
कैसे लाज बचाऊ ?

यम से यूध्द निपुण सावित्री 
त्र्प्राज त्र्प्ररे पामाल  हुई 
सीता रावण के घर पहुंची 
द्रपद - सुता बेहाल हुई 
लंकारण के साज सजू ? 
या फिर कुरुक्षेत्र मचाउ ? 
देव त्र्प्राज यह कहो मातु की 
कैसे लाज बचाउ ? 

ज्योति पुंज समझा था जिसको 
त्र्प्रधकार के बीच खडा 
बांध लंगोटी लिये लकुटिया, 
त्र्प्रग्नि शिखा के मध्य खड़ा 
क्या त्र्प्रबकी प्रह्राद जलेगा ? 
हिय को क्या समझाउ ? 

मातु हेतु बलिया सहता त्र्प्राया 
जो कुछ सर त्र्प्रान पड़ा 
कमर कसे सर बांध कफन 
त्र्प्रब भी है यह तैयार खड़ा 
धन "विचार " जन मांग रहे क्या ? 
कह दो सभी लुटाऊँ ? 
देव! त्र्प्राज यह कहो मातु की 
कैसे लाज बचाऊं? 

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